जानिए आपका दृढ़ निश्चय आपसे क्या करा सकता है(Your Self-determination)

    कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति किसी काम को दृढ नीयत से करे तो दुनिया की कोई ताकत उसे हरा नहीं सकती। मनुष्य की आत्मा के सामने बड़ी से बड़ी समस्या बौनी साबित होती है। आज हम एक ऐसे शख्स की बात कर रहे हैं जो वक्त के साथ बुरी तरह टूट गया था लेकिन उसने हार नहीं मानी और आज दुनिया उस शख्स को सलाम करती है।



  हम बात कर रहे हैं IAS रमेश घोलप की, जो आज उन युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जो सिविल सर्विसेज में जाना चाहते हैं। रमेश को बचपन में ही बाएं पैर में पोलियो हो गया था और परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि रमेश को अपनी मां के साथ सड़कों पर चूड़ियां बेचनी पड़ीं। लेकिन रमेश ने हर मुश्किल को मात दी और एक आईएएस अधिकारी के रूप में सामने आए।


  रमेश के पिता की साइकिल की छोटी सी दुकान थी। हालांकि उनके परिवार में चार लोग थे, लेकिन उनके पिता की शराब पीने की आदत ने उन्हें सड़क पर खड़ा कर दिया। अधिक शराब पीने के कारण जब उनके पिता को अस्पताल में भर्ती कराया गया तो परिवार की सारी जिम्मेदारी मां पर आ गई। बेचारी मां ने सड़कों पर चूड़ियां बेचना शुरू कर दिया, रमेश के बाएं पैर में पोलियो हो गया था लेकिन हालात ऐसे थे कि रमेश को मां और भाई के साथ-साथ चूड़ियां भी बेचनी पड़ीं.


  गाँव में पढ़ाई पूरी करने के बाद रमेश को अपने चाचा के गाँव बरसी में एक बड़े स्कूल में दाखिला लेना पड़ा। वर्ष 2005 में जब रमेश 12वीं कक्षा में था तब उसके पिता का देहांत हो गया था। चाचा के गांव से उनके घर जाने के लिए बस से 7 रुपए लगते थे, लेकिन अपंगता के कारण रमेश से केवल 2 रुपए चार्ज करते थे, लेकिन समय देखिये उस समय रमेश के पास 2 रुपए भी नहीं थे।


  किसी तरह रमेश पड़ोसियों की मदद से अपने घर पहुंचा। रमेश ने 12वीं में 88.5% अंकों के साथ परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने शिक्षा में डिप्लोमा किया और गांव के एक स्कूल में शिक्षक बने। रमेश ने डिप्लोमा करने के साथ-साथ बीए की डिग्री भी ली। रमेश शिक्षक बनकर अपने परिवार का खर्च चला रहा था लेकिन उसका लक्ष्य कुछ और था।



  रमेश ने छह महीने नौकरी छोड़ दी और मन लगाकर पढ़ाई की और यूपीएससी की परीक्षा में बैठा लेकिन 2010 में उसे सफलता नहीं मिली। माँ ने गाँव वालों से कुछ पैसे उधार लिए और रमेश सिविल सर्विस की पढ़ाई के लिए पुणे चला गया। रमेश ने अपने गाँव वालों से कसम खाई थी कि जब तक वह एक वरिष्ठ अधिकारी नहीं बन जाता, तब तक वह गाँव वालों को अपना मुँह नहीं दिखाएगा।


  आखिरकार 2012 में रमेश की मेहनत रंग लाई और रमेश ने यूपीएससी परीक्षा में 287वां रैंक हासिल किया। और इस तरह बिना किसी कोचिंग के अनपढ़ माता-पिता का बेटा आईएएस अधिकारी बन गया और वर्तमान में रमेश जी झारखंड के खूंटी जिले में एसडीएम के पद पर तैनात हैं।


  दोस्तों अक्सर देखा जाता है कि हम अपने दुखों के लिए हमेशा आंसू बहाते हैं। अपने अभाव को अपना भाग्य मानकर वे अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं, लेकिन रमेश जी जैसे कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो परिस्थितियों को अपना भाग्य नहीं बनाते बल्कि अपनी किस्मत खुद लिखते हैं।

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1 Comments

  1. रमेश की लगन व निष्ठा को सलाम , युवा पीढ़ी के सभी लोग इस कार्य से प्रेरित होकर कठिन परिश्रम करके स्वयं और देश को उन्नति की शिखर पर स्थापित करें।
    अंजनी नन्दन चतुर्वेदी प्राचार्य सरस्वती उच्च माध्यमिक विद्यालय सिंगरौली मध्यप्रदेश

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